फ़रवरी 16, 2010

फ़ासले.....

ज़िन्दगी को बाज़ी समझकर,
सबने किये सौदे....
कुछ तुमने , कुछ हमने,
फ़र्क क्या था ?
वक़्त बदला था, या
बढे थे फ़ासले ?
वक़्त तो वहीं है...
बस,
बदले हम और तुम,
फिर बढ़े फ़ासले...  
कभी तुम पीछे हटे,
कभी ! हम आगे बढ़े, 
एक-एक कदम से बने थे,
फ़ासले....
मीलों पीछे आकर,
क्या ? मिट पाते ये
फ़ासले....
अब तो बढ़ना होगा ,
हमको...
एक कदम तुम ,और 
एक कदम हम...  


   वेदांश......