दिसंबर 28, 2011

हाशिया

तू इस पार, मैं उस पार.
इस पार  या उस पार.
हाशिये के आर पार,
आर या पार,दोनो हैं, बेकार.
मैं भी शब्द और तू भी,
तू हाशिये के आर, मैं पार.
लेकिन.. कौन आर.
 कौन पार.
ये सोचना है,बेकार.
तू भी  साथ,मैं भी साथ.
फिर..क्या उस हाशिये की बिसात,
हाशिया है, एक सीधी रेखा.
क्या उसने कभी दाएं बाएँ देखा,
दाएं बाएँ भी हैं.. कई रेखा.
उनके बीच में हमको समेटा,
दीवार या स्केल,
दोनों का खेला एक ही खेल,
बना दो कोठा या फिर जेल
सीधी रेखा का रचा  झमेला
हाशिये  को भी था ,
कभी..
इसी इंक ने  उकेरा....

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