रिश्तों की मुक़र्रर सजा की सुनवाई है आज ,कुछ दलीलें इस तरफ से हैं और कुछ उस तरफ से,गवाहों की कहीं कोई कमी न पड़े यही तो कोशिश है सबकी . कठघरे में खड़ा है थोड़ा सच और थोड़ा झूट !शक्ल अलग है पर है वही .आज फिर लगेंगी बाजियां वही मोहरे होंगे ,वही प्यादे होंगे .तमाशे देखेगा खड़े हो वजीर और ये बादशाह होगा अपनी ही जुस्तजू में ................
सन्नाटा है... सन्नाटा है... कैसा? ये सन्नाटा है.... इस शहर के लोगों का, क्यों ? आपस में टूटा नाता है .. कैसा?ये सन्नाटा है ... रेत पकड़ने पर,हाथ किसके आती है, छोड़ने पर थोड़ी तो शेष रह जाती है .. पर फिर भी ये राग, नहीं किसी को भाता है, शायद!तभी शहर में इतना फैला सन्नाटा है. मैखाने में तो हर कोई पैमाने छलकाता है , पर इस दुनिया में तो पैमाना ख़ाली ही रह जाता है ... सन्नाटा है भाई सन्नाटा है...... चेहरों पे चेहरे,नकाब पे नकाब ... उन रकीबों का क्या ? वो तो हैं बेताब ................
ज़िन्दगी गर कोई जीता है, फिर क्यों वो पीता है.... कभी गम को,कभी अश्कों को ... क्यों वो पैमानों में रखता है , छलककर जाम भी तो बहुत कुछ, कहता है... ख्वाबों कि इस दुनिया रहकर , कब, कोई कुछ होता है ...... हाँ लेकिन इस दुनिया में, अँधा ही कहाँ अँधा होता है ... बदलते मुकाम रुकी ज़िन्दगी, यही तो है अपनी पेशगी ... आईने से उठता धुआं , खुद से मांगता पनाह ... दर-ब-दर ठोकरें खाता, अपने अक्स का कायल इन्सान ......