ज़िन्दगी के सफ़र में ,
ख़्वाबों की तामीर में,
रिश्तों की रुसवाई में,
और
अपनों के बीच तन्हाई में,
खुले मुंह दफ़न होती हैं ,
कई सिसकियाँ ....
सन्नाटों के इस शहर में ,
उठती है अक्सर एक आवाज़,
जिसे कायनात भी अपने में समेट न सकी,
पल-पल बनते औ मिटते निशां.....
हर घड़ी खत्म होता जहाँ का वज़ूद ,
और ख़ुद को पते हम एक नए जहाँ में ,
कभी उम्मीद और नाउमीद से मोलभाव करते ,
कभी ख़ुद का वज़ूद तलाशते .....
वेदांश....
1 टिप्पणी:
great lines...kip it up
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