अप्रैल 19, 2011

अदालत........: आम आदमी

अदालत........: आम आदमी

आम आदमी

 आम आदमी है तू ...
बोलेगा तो सोचेगा और सोचेगा
 तो लब सिल जाएँगे तेरे 
बोल नहीं पाएगा तू ...
गर बोल भी दिया तो क्या ...
फिर वही मुनादियों  का खेल होगा 
और घोषित कर दिया जाएगा...
तुझे,
 भटका हुआ... नासमझ आम आदमी..
फिर तू मनाएगा एक शोक सभा ..
लोग आएंगे  झुकी गर्दन से शोक मानेंगे 
अकड़ तो शरीर की है ...तो क्या ?
हाँ फिर सफ़ेद रौशनी का एक भभका निकलेगा ..
आवाज़ आएगी क्लिक...
और तू उस शोक सभा आन्दोलनकारी बन जाएगा ....