रिश्तों की मुक़र्रर सजा की सुनवाई है आज ,कुछ दलीलें इस तरफ से हैं और कुछ उस तरफ से,गवाहों की कहीं कोई कमी न पड़े यही तो कोशिश है सबकी . कठघरे में खड़ा है थोड़ा सच और थोड़ा झूट !शक्ल अलग है पर है वही .आज फिर लगेंगी बाजियां वही मोहरे होंगे ,वही प्यादे होंगे .तमाशे देखेगा खड़े हो वजीर और ये बादशाह होगा अपनी ही जुस्तजू में ................
अप्रैल 19, 2011
आम आदमी
आम आदमी है तू ...
बोलेगा तो सोचेगा और सोचेगा
तो लब सिल जाएँगे तेरे
बोल नहीं पाएगा तू ...
गर बोल भी दिया तो क्या ...
फिर वही मुनादियों का खेल होगा
और घोषित कर दिया जाएगा...
तुझे,
भटका हुआ... नासमझ आम आदमी..
फिर तू मनाएगा एक शोक सभा ..
लोग आएंगे झुकी गर्दन से शोक मानेंगे
अकड़ तो शरीर की है ...तो क्या ?
हाँ फिर सफ़ेद रौशनी का एक भभका निकलेगा ..
आवाज़ आएगी क्लिक...
और तू उस शोक सभा आन्दोलनकारी बन जाएगा ....
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