रिश्तों की मुक़र्रर सजा की सुनवाई है आज ,कुछ दलीलें इस तरफ से हैं और कुछ उस तरफ से,गवाहों की कहीं कोई कमी न पड़े यही तो कोशिश है सबकी . कठघरे में खड़ा है थोड़ा सच और थोड़ा झूट !शक्ल अलग है पर है वही .आज फिर लगेंगी बाजियां वही मोहरे होंगे ,वही प्यादे होंगे .तमाशे देखेगा खड़े हो वजीर और ये बादशाह होगा अपनी ही जुस्तजू में ................
मार्च 05, 2011
मैं और वजूद
खुद की तलाश में ...
अक्सर बैठ जाता हूँ ऐसी जगह,
जहाँ मेरा वजूद मेरा साथ छोड़ देता है...
तब खुद को खुद के करीब पाता हूँ,
बहुत खुश होता हूँ मैं...
लेकिन मेरा वजूद कुछ नाराज़ सा रहता है...
पर क्या करूँ ?
1 टिप्पणी:
जबरदस्त बेदंाश जी हर आदमी अपने ही बजूद से हारता है... पर जीतने का सतत संधर्ष ही विजेता बनाता है। आभार। बहुत अच्छी रचना।
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