मार्च 05, 2011

मैं और वजूद

 खुद की तलाश में ...
अक्सर बैठ जाता हूँ ऐसी जगह,
जहाँ मेरा वजूद मेरा साथ छोड़ देता है...
तब खुद को खुद के करीब पाता हूँ,
बहुत खुश होता हूँ मैं...
लेकिन मेरा वजूद कुछ नाराज़ सा रहता है...  
पर क्या करूँ ?
न चाहकर भी उससे हार जाता हूँ......


वेदांश.....

1 टिप्पणी:

Arun sathi ने कहा…

जबरदस्त बेदंाश जी हर आदमी अपने ही बजूद से हारता है... पर जीतने का सतत संधर्ष ही विजेता बनाता है। आभार। बहुत अच्छी रचना।