फ़रवरी 16, 2010

सुकून ...........

 नहीं रहा अब,वो सुकून ,


ज़ख्मों को कुरेदने में ,


यादों को सहेजने में,


टूटे शीशे जोड़ने में,


कुछ शर्तों को तोड़ने में,


 और,


अपने साये को पीछे छोड़ने में...



हाँ गुरेज़ नहीं मुझे कहने से ,


ज़िन्दगी थी मेरी भी,


 जैसे बिन पानी मीन,


पर,


कहने को हम भी आबाद थे ,इतने


न बर्बाद थे...


कुछ बेफ़िक्र से ,कुछ आज़ाद से ,


बंज़र टीले के मगरूर बादशाह से,


 रोज़ो -शब्, शामो-सहर ..


रहती है एक ही ख़लिश दिल में,


काश न सुन पाते ,दिल की आवाज़....

  


 वेदांश .....

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