फ़रवरी 16, 2010

नमन है ... दिव्यरूप,जगत्व्यापी माँ..

जिसको हम कहते हैं माँ...


जिसमे सिमटा है पूरा जहाँ,


इस शब्द जैसा और.. कोई ?कहाँ?


प्यार है इसका चांदनी रात ,


लगता न ग्रहण उस प्यार में,


रहती हमेशा पूनम सी धवल छाया ,


दूधिया ज्ञान की रौशनी में ,इसके


बनती है एक इंसानी काया ,


रहता जिसका आशीर्वाद ,


बनकर हमारा साया ,


गंगा से भी निर्मल,पावन है,


 जिसका आंचल.....


नयनों से बरसती है ममता,


क्या इंसान,क्या पशु...


सबका मन उसी में रमता,


है क्या?कोई भाग्यशाली हमसा ....





वेदांश...

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