फ़रवरी 16, 2010

वज़ूद

ज़बान से ज़ख्म खाए हैं,
हमने...
खंज़र क्या बोल पायेगा...
हर नज़र ने जलाया है ,
रोशन आग...
क्या ? बुझा पायेगी,
यादों के सैलाब उमड़ते हैं ,
इस दिल में ...
क्या आंधी , क्या तूफ़ान..
वज़ूद मिरा मिटा पाएंगे ....  




 वेदांश....        

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