फ़रवरी 16, 2010

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी के सफ़र में  ,
ख़्वाबों की तामीर में,
रिश्तों की रुसवाई में,
और
अपनों के बीच तन्हाई में,
खुले मुंह दफ़न होती हैं ,
कई सिसकियाँ ....
सन्नाटों के इस शहर में ,
उठती है अक्सर एक आवाज़,
जिसे कायनात भी अपने में समेट न सकी,
पल-पल बनते औ मिटते निशां.....
हर घड़ी  खत्म होता जहाँ का वज़ूद  ,
और ख़ुद को पते हम एक नए जहाँ में ,
कभी उम्मीद और नाउमीद  से मोलभाव करते ,
कभी ख़ुद का वज़ूद तलाशते .....      



 वेदांश.... 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

great lines...kip it up