फ़रवरी 16, 2010

सौदे...


यहाँ-वहां , इधर-उधर... 


है परेशानी का सबब ,


ज़िन्दगी के इस सफ़र में ,


ख़्वाबों  की तामीर को ,
तराज़ू में तोलकर...
हर कोई कर रहा है ,


सौदे...


मैंने भी किये,


और 


कर रहा हूँ ...


अल्फाज़ों को बेच,


खुशियाँ खरीदी ....


वहीं कुछ ,


नगमे भी खरीदे,


ग़मों को बेच....    








 वेदांश......

1 टिप्पणी:

हिमांशु डबराल Himanshu Dabral (journalist) ने कहा…

आज हर आदमी सौदे कर रहा है...फर्क इतना है की कुछ बड़े और कुछ छोटे होते है...
दिल से लिखी कविता है...
शुभकामनाये